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अपने अपने दायरों का हिसाब कर ले | Madam Sir | Karishma Singh

अपने अपने दायरों का हिसाब कर ले 

अपने अपने दायरों का हिसाब कर ले | Madam Sir | Karishma Singh


चलो आज बात कुछ यूँ कर ले 

अपने अपने दायरों का  हिसाब  कर ले 

तेरे हिस्से में कितना तू आता है 

मेरे हिस्से में कितनी मैं 

चल आज ये बात भी साफ़ कर ले 


सवाल ये है कि... 

तेरे हिस्से में जवाब ही क्यों 

मेरे हिस्से में सवाल ही क्यों 

तेरे हिस्से में पूरी मर्जी तेरी 

मेरे हिस्से में सिर्फ इज़ाज़त ही क्यों 


तुम्हें नहीं लगता ये जायज नहीं 

तेरे हिस्से में सिर्फ तू 

मेरे हिस्से में पूरी मैं भी नहीं 

क्यों न रिश्तो की इस दोहरे चेहरे की धूल भी साफ़ कर ले

अपने अपने दायरों का  हिसाब  कर ले 


सवाल यह है कि 

मुझे मेरे हिस्से में जीने के लिए तेरी इज़ाज़त की जरुरत क्यों है 

हर रोज तेरी हा और ना के बीच घुटते रहने की जरुरत क्यों है

ये सारे कायदे, सारे बोझ 

मेरे हिस्से में क्यों है 

मेरा हिस्सा तेरे तंग दिल इज़ाज़त का मोहताज क्यों है 

जब हिस्से बराबर है तो दस्तूर क्यों नहीं 

तू भी मेरी इज़ाज़त कि घुटन का बोझ उठाने के लिए मजबूर क्यों नहीं 

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