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वो जो मुकर गयी थी जिसके लिए, मुझे भी बात वही मनमानी थी - जय ओझा (Jai Ojha)

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    वो जो मुकर गयी थी जिसके लिए, मुझे भी बात वही मनवानी थी


    "बड़ी अजीब ये परेशानी थी" जय ओझा (Jai Ojha) द्वारा रचित एक बेहद लोकप्रिय कविता है। यह कविता एक प्रेमी के मन के द्वंद्व, उसके अहंकार (अना) और टूटे हुए वादों की कड़वाहट को दर्शाती है। ओपन माइक 'BMS Lounge' में सुनाई गई यह कविता आज के युवाओं के बीच काफी चर्चित है।

    की बड़ी अजीब ये परेशानी थी,
    मेरी अना की ये कहानी थी
    वो जो मुकर गयी थी जिसके लिए
    मुझे भी बात वही मनमानी थी

    कुछ फूल थे मुरझाये से
    उसकी फक्त एक निशानी थी
    भले नया नया वो कमरा था
    कमरे में तस्वीर वही पुरानी थी

    वो जो मुकर गयी थी जिसके लिए
    मुझे भी बात वही मनमानी थी

    की सिर्फ तुम हो सिर्फ तुम ही रहोगे
    कितनी झूठी ये कहानी थी
    की सिर्फ तुम हो सिर्फ तुम ही रहोगे
    कितनी झूठी ये कहानी थी

    वो जो भूल गई थी न जाते जाते
    अरे बात वही तो याद दिलानी थी
    वो जो मुकर गयी थी जिसके लिए
    मुझे भी बात वही मनमानी थी

    तस्वीरें देखते रहे हर वक़्त उसकी
    जिंदगी यु थोड़ी गवानी थी
    जलाई और जलानी पड़ी यादे सारी
    भाई हमको भी जान बचानी थी

    वो जो मुकर गयी थी जिसके लिए
    मुझे भी बात वही मनमानी थी

    वो बात आखिर अधूरी रही
    कविताओं में जो उसे बतानी थी
    हम तो कच्चे शायर थे भाई
    ये तालियां खुदा की मेहरवानी थी

    वो बात आखिर अधूरी रही
    कविताओं में जो उसे बतानी थी
    हम तो कच्चे शायर थे भाई
    ये तालियां खुदा की मेहरवानी थी

    वो जो मुकर गयी थी जिसके लिए
    मुझे भी बात वही मनमानी थी

    बड़ी अजीब ये परेशानी थी,
    मेरी अना की ये कहानी थी
    वो जो मुकर गयी थी जिसके लिए
    मुझे भी बात वही मनमानी थी


    Credits & Attribution:

    कवि (Poet): जय ओझा (Jai Ojha)

    प्लेटफ़ॉर्म: BMS Lounge Open Mic (Ep-2)

    मूल वीडियो: Watch on YouTube

    अस्वीकरण: यह सामग्री केवल शैक्षिक और साहित्यिक आनंद के लिए साझा की गई है। सभी अधिकार मूल रचनाकार और चैनल के पास सुरक्षित हैं।