मृत्यु का भय: एक भयंकर यथार्थ
मृत्यु के भय की चर्चा अक्सर होती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि मृत्यु से अधिक उसका भय भयंकर होता है। यह सत्य एक दृष्टांत के माध्यम से समझा जा सकता है।
दृष्टांत: उल्लू, सर्प और चूहा
अचानक की गई मुलाकात
एक दिन, दो उल्लू एक वृक्ष पर आकर बैठे।
- एक उल्लू ने अपने मुँह में सर्प पकड़ा हुआ था, जो उसके नाश्ते का हिस्सा था।
- दूसरे उल्लू ने चूहा पकड़ा हुआ था।
दोनों उल्लू पास बैठे थे, और उनके शिकार भी पास-पास थे।
सर्प का लोभ और चूहे का भय
साँप ने जैसे ही चूहे को देखा, वह यह भूल गया कि वह स्वयं उल्लू के मुँह में है और मृत्यु के करीब है।
- सर्प को चूहे को खाने की लालसा हुई।
- वहीं, चूहा साँप को देखकर भयभीत हो गया और काँपने लगा।
भय और भूख की बिडंबना
चूहा यह देख ही नहीं सका कि सर्प स्वयं काल (मृत्यु) के मुँह में है।
- चूहे के भय का कारण साँप था, जबकि साँप स्वयं भी मृत्यु का शिकार होने वाला था।
- यह भूख और भय का अद्भुत खेल है।
उल्लुओं का निष्कर्ष
जीभ का स्वाद और मृत्यु का अंधापन
एक उल्लू ने दूसरे से पूछा, "भाई! इसका क्या अर्थ समझे?"
दूसरे ने कहा:
- जीभ के स्वाद की इच्छा इतनी प्रबल है कि मृत्यु सामने खड़ी हो, फिर भी दिखाई नहीं देती।
- भय मृत्यु से भी बड़ा है।
भय का प्रभाव
यह भय ही चूहे को अधिक भयभीत कर रहा था, न कि मृत्यु।
कहानी का गूढ़ अर्थ
मृत्यु और भगवान का संबंध
- मृत्यु और काल, दोनों भगवान की सृष्टि के अंग हैं।
- भगवान महाकाल हैं, जो मृत्यु और काल को भी नष्ट कर सकते हैं।
- आत्मा अजर-अमर है और काल से परे है।
जीवन और मृत्यु का चक्र
- प्रत्येक जीवात्मा के जन्म के साथ ही उसका मरना आरंभ हो जाता है।
- लेकिन यह मरना हमें कभी दिखाई नहीं देता।
काल का अचूक प्रभाव
शरीर का विकास या विनाश?
हम जिसे शरीर का विकास मानते हैं, वेदांत उसे सबसे बड़ा विनाश मानता है।
- काल का हर क्षण जीवात्मा को मृत्यु के करीब ले जाता है।
- यही कारण है कि भय मृत्यु से अधिक भयंकर होता है।
मुख्य संदेश
मृत्यु का भय: हमारी सबसे बड़ी कमजोरी
यह कहानी हमें यह समझाती है:
- मृत्यु स्वाभाविक है और ईश्वरीय योजना का हिस्सा है।
- मृत्यु से अधिक भयंकर है उसका भय।
- अपनी लालसाओं और भय से मुक्त होकर हमें जीवन को समझने का प्रयास करना चाहिए।
निष्कर्ष
मृत्यु जीवन का अपरिहार्य सत्य है, लेकिन उससे अधिक भयंकर है मृत्यु का भय। इस भय से बचने के लिए भगवान पर विश्वास और आत्मज्ञान आवश्यक है।
जय जय श्री राधे!