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बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत : रामचरितमानस

“बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीति।”

जब भगवान राम क्रोधित हुए: एक कहानी जो आपके दिल को छू जाएगी

“बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीति।”

क्या आपने कभी किसी ऐसे इंसान से विनम्रता से बात करने की कोशिश की है जो आपकी बात को नज़रअंदाज़ करता रहा हो?

सोचिए…
आप तीन दिन तक किसी से शांति और आदर से कुछ माँगते रहें, और वो बस चुपचाप बैठा रहे। जवाब भी न दे। तब आप क्या करेंगे?

इसी परिस्थिति में एक बार भगवान राम भी आ गए थे…
और यहीं से शुरू होती है एक ऐसी कहानी — जो ना सिर्फ रामायण की है, बल्कि आपकी ज़िंदगी की भी है।


🌴 पृष्ठभूमि: रावण की लंका और समुद्र की दीवार

लंका में सीता माँ रावण की कैद में थीं। भगवान राम, लक्ष्मण और उनकी विशाल वानर सेना (जिसमें हनुमान भी थे), समुद्र किनारे पहुँचे थे। अब लंका तक पहुँचने के लिए उन्हें समुद्र पार करना था।

राम ने सोचा, “ये समुद्र भी तो एक देवता है, इसे निवेदन किया जाए।”

वे तीन दिन तक पूजा करते रहे। जल पर बैठकर, हाथ जोड़कर समुद्र से प्रार्थना करते रहे:

“हे समुद्र देव! मैं तुम्हारा सम्मान करता हूँ। कृपया हमें रास्ता दो ताकि हम सीता माँ को वापस ला सकें।”

तीन दिन बीत गए।

कोई उत्तर नहीं।
कोई संकेत नहीं।
कोई लहर भी नहीं हिली।


😠 जब राम का धैर्य टूटा

तीन दिन तक जिस भगवान राम को दुनिया मर्यादा पुरुषोत्तम कहती है — उनके अंदर भी अब एक युद्धवीर जाग उठा।

उन्होंने आँखों में क्रोध भर लिया, धनुष उठाया, और समुद्र को लक्ष्य करके अग्निबाण चढ़ाया। पूरी वानर सेना सन्न। हवा थम गई। लहरें काँप उठीं।

फिर राम बोले – और ये वो शब्द हैं, जो हमें आज तक याद हैं:

"बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीति।"

"जब विनम्रता काम न आए, तो फिर डर दिखाना ज़रूरी है। बिना भय के कोई प्रेम और सम्मान नहीं करता।"

क्या आप भी कभी ऐसी स्थिति में फंसे हैं?
जहाँ आपकी विनम्रता को कमजोरी समझ लिया गया हो?

बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत



🌊 फिर क्या हुआ? समुद्र बोल उठा!

जैसे ही राम ने अग्निबाण चढ़ाया, समुद्र देवता काँप उठे।
जल से एक विशाल पुरुष प्रकट हुआ, हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

"प्रभु! मुझे क्षमा करें। मैं नियमों से बंधा हूँ। मैं खुद रास्ता नहीं बनाता, लेकिन मैं मार्ग बता सकता हूँ।"

और फिर, समुद्र ने नल-नील को वरदान दिया कि वे पत्थर पानी पर तैरा सकें।
रामसेतु का निर्माण हुआ — और लंका की ओर यात्रा शुरू।


🔥 ये सिर्फ रामायण की कहानी नहीं है — ये आपकी कहानी है!

इस कहानी को सिर्फ पौराणिक घटना मानकर मत छोड़िए।
ये हर उस व्यक्ति की कहानी है — जो विनम्र है, शांत है, लेकिन अनदेखा किया गया है।

आपने कभी:

  • बॉस से विनती की हो और वो टाल गया हो?

  • परिवार में किसी से समझाने की कोशिश की और उसे फर्क नहीं पड़ा हो?

  • किसी रिश्ते में बार-बार सम्मान से बात की हो, पर सामने वाला आपके जज़्बात को न समझे?

तो फिर याद रखिए:

“धैर्य महान है, पर हर सहनशीलता की भी एक सीमा होती है।”

भगवान राम ने पहले प्रार्थना की — वो उनका धैर्य था।
फिर उन्होंने क्रोध दिखाया — वो उनका साहस था।

और सबसे खास बात?

राम का क्रोध भी मर्यादा में था। उन्होंने विनम्रता के बाद ही शक्ति दिखाई।
पहले शांति, फिर शक्ति — यही है नेतृत्व की असली परिभाषा।


🐘 एक और प्रेरणादायक दृष्टांत: हाथी और लकड़हारा

एक जंगल में एक हाथी रोज़ नदी में नहाने जाता था। एक लकड़हारा उसे देखकर रोज़ हँसता था, “कितनी बार नहाता है ये! क्या रोज़ गंदा हो जाता है?”

हाथी कुछ नहीं कहता।

लेकिन एक दिन लकड़हारे ने उसकी सूंड में पत्थर फेंका। तब हाथी ने पूरा कीचड़ भरकर लकड़हारे पर फेंक दिया।

लकड़हारा चिल्लाया, “ये क्या किया?”

हाथी बोला, “अब तू समझा। मैं शांत था, सहनशील था। पर तूने मेरी चुप्पी को मेरी कमजोरी समझा।”

सीख:
चुप रहना कमजोरी नहीं।
समय आने पर जवाब देना भी ज़रूरी होता है।


📜 राम का सन्देश: जीवन में संतुलन ज़रूरी है

राम की ये कहानी हमें क्या सिखाती है?

विनम्र रहो, लेकिन आत्मसम्मान मत खोओ
प्रार्थना करो, लेकिन जब ज़रूरत हो तो धनुष उठाओ
सब्र रखो, लेकिन जब समय आए तो सीमा खींचो
सबको सम्मान दो, लेकिन खुद का अपमान सहन मत करो


🌟 निष्कर्ष: क्या आप अपने जीवन में "राम" बन सकते हैं?

जब आप किसी रिश्ते, समाज, या कार्यक्षेत्र में बार-बार अनदेखा किए जाते हैं, तो भगवान राम की इस कहानी को याद कीजिए।

शुरुआत हमेशा सम्मान से होनी चाहिए।
लेकिन जब सम्मान टूटने लगे, तब अपने भीतर के राम को जगाइए — जो मर्यादा भी जानता है और न्याय भी।

“भय बिनु होय न प्रीति” –
प्रेम वहीं टिकता है जहाँ सामने वाला आपको खोने का डर रखे।


🙏 क्या आप तैयार हैं अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए?

अब अगली बार जब कोई आपकी विनम्रता को नज़रअंदाज़ करे…
आप मुस्कुराइए… और याद कीजिए —
राम तीन दिन चुप रहे थे। चौथे दिन पूरी दुनिया हिल गई थी।


अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो, तो इसे दूसरों तक ज़रूर पहुँचाएँ।
शायद किसी को आज यही सीख चाहिए —
कि विनम्रता को कमजोरी समझने की गलती न करें।



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