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कृष्णा विरह - स्वाति मिश्रा | कान्हा लौट के आओ | पूर्ण लिरिक्स और हिंदी भावार्थ

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     यहाँ स्वाति मिश्रा द्वारा गाए गए भजन "कृष्णा विरह" के पूर्ण लिरिक्स (Lyrics) दिए गए हैं। यह गीत राधा रानी की विरह वेदना और कान्हा के प्रति उनके अटूट प्रेम को दर्शाता है।


    कान्हा लौट के आओ (कृष्णा विरह) - लिरिक्स

    गायक: स्वाति मिश्रा

    संगीत: मोहित म्यूजिक

    श्रेणी: भक्ति / विरह गीत


    कान्हा लौट के आओ (कृष्णा विरह) - लिरिक्स

    स्थायी

    नाम तुम्हारा रटते-रटते, राधा के अब बीते दिन

    अंखियां बिछाई राह में तेरी, कटते नहीं अब दिन तेरे बिन।

    नाम तुम्हारा रटते-रटते, राधा के अब बीते दिन

    अंखियां बिछाई राह में तेरी, कटते नहीं अब दिन तेरे बिन।

    क्यों तुम मुझको छोड़ गए, सारे रिश्ते तोड़ गए

    हाँ, क्यों तुम मुझको छोड़ गए, सारे रिश्ते तोड़ गए...

    हो कान्हा! ऐसे सताओ ना, बृज को लौट के आओ ना

    हो कान्हा! ऐसे सताओ ना, बृज को लौट के आओ ना।


    अंतरा - 1

    ढूंढ रही हैं अखियां तुमको, कहीं तो दिखेगा कान्हा इनको

    ढूंढ रही हैं अखियां तुमको, कहीं तो दिखेगा कान्हा इनको।

    ऐसी क्या मजबूरी है, प्रेम से भी क्या जरूरी है?

    हो कान्हा! यूं ठुकराओ ना, बृज को लौट के आओ ना

    ओ कान्हा! यूं ठुकराओ ना, मुझको लौट के आओ ना।


    अंतरा - 2

    कैसे जिएगी तुम बिन राधा, एक-एक पल लगे सदियों से ज्यादा

    कैसे जिएगी तुम बिन राधा, एक-एक पल लगे सदियों से ज्यादा।

    कैसी उम्र मैं काटूंगी, तुम बिन गम भी किसे बाटूंगी?

    हो कान्हा! प्राण बचाओ ना, बृज को लौट के आओ ना

    कान्हा! प्राण बचाओ ना, मुझको लौट के आओ ना।


    अंतरा - 3

    कहते थे तुम तो "मेरी प्रिय हो", फिर कैसा प्रेम का फल ये दिए हो?

    कहते थे तुम तो "मेरी प्रिय हो", फिर कैसा प्रेम का फल ये दिए हो?

    क्या कोई अपनों को त्यागता है? दिल के रिश्तों से भागता है?

    कान्हा! अब तो रुलाओ ना, ब्रज को लौट के आओ ना

    हो कान्हा! अब तो रुलाओ ना, बृज को लौट के आओ ना।

    बृज को लौट के आओ ना...

    बृज को लौट के आओ ना...


    भजन "कृष्णा विरह" का भावार्थ अत्यंत मार्मिक है। यह उस समय का वर्णन करता है जब भगवान श्री कृष्ण गोकुल और बृज को छोड़कर मथुरा चले गए थे और राधा जी उनके पीछे तड़प रही थीं।

    यहाँ इस भजन का चरण-दर-चरण भावार्थ दिया गया है:

    1. विरह की प्रतीक्षा (मुखड़ा)

    नाम तुम्हारा रटते-रटते, राधा के अब बीते दिन...

    भावार्थ: राधा जी कहती हैं कि हे कान्हा, आपका नाम जपते-जपते मेरे दिन बीत रहे हैं। मेरी आँखें हर वक्त उस रास्ते को निहारती रहती हैं जहाँ से आप गए थे। आपके बिना एक-एक दिन काटना अब मेरे लिए असंभव हो गया है। आपने अचानक सारे रिश्ते क्यों तोड़ दिए और मुझे अकेला क्यों छोड़ दिया?


    2. प्रेम की प्राथमिकता (पहला अंतरा)

    ढूंढ रही हैं अखियां तुमको... ऐसी क्या मजबूरी है, प्रेम से भी क्या जरूरी है?

    भावार्थ: राधा रानी अपनी व्याकुलता व्यक्त करते हुए कहती हैं कि मेरी आँखें पागलों की तरह आपको ढूंढ रही हैं। वे विश्वास नहीं कर पा रही हैं कि आप सामने नहीं हैं। वह कृष्ण से प्रश्न करती हैं कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी जो आपने प्रेम को पीछे छोड़ दिया? क्या दुनिया में प्रेम से भी ज्यादा कुछ जरूरी हो सकता है?


    3. समय का बोझ (दूसरा अंतरा)

    कैसे जिएगी तुम बिन राधा, एक-एक पल लगे सदियों से ज्यादा...

    भावार्थ: जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो उनके बिना बिताया गया एक क्षण भी एक सदी (100 साल) जैसा लंबा लगता है। राधा जी कहती हैं कि मैं आपके बिना यह लंबी उम्र कैसे गुजारूँगी? मेरे पास जो दुख है, उसे बांटने वाला भी अब कोई नहीं है क्योंकि मेरा सर्वस्व तो आप ही थे।


    4. अधिकार और उलाहना (तीसरा अंतरा)

    कहते थे तुम तो मेरी प्रिय हो... क्या कोई अपनों को त्यागता है?

    भावार्थ: यहाँ राधा जी कान्हा को उलाहना (शिकायत) दे रही हैं। वह कहती हैं कि आप तो मुझे अपनी 'प्रिय' कहते थे, फिर प्रेम के बदले मुझे यह विरह का दुख क्यों दिया? क्या कोई अपने ही प्रियजनों को इस तरह छोड़कर भागता है? अंत में वह विनती करती हैं कि अब और मत रुलाओ और वापस अपने घर (बृज) लौट आओ।


    भजन का मुख्य संदेश

    यह भजन 'निस्वार्थ प्रेम' और 'तड़प' का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भक्त (राधा) का भगवान (कृष्ण) के बिना कोई अस्तित्व नहीं है और भगवान के दूर जाने पर भक्त की आत्मा कितनी व्याकुल हो जाती है।