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प्रेम का मार्ग: प्रेमानंद जी महाराज की वह अनकही कहानी, जिसने दुनिया को झुकना सिखाया

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    आज के इस दौर में जहाँ हर चीज़ का विज्ञापन किया जाता है, वहाँ एक ऐसी शख्सियत भी है जो शांति और सादगी की मिसाल बनी हुई है। हम बात कर रहे हैं प्रेमानंद जी महाराज की। महाराज जी की कहानी केवल एक संत की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस अटूट विश्वास और प्रेम की दास्तान है, जो हर उस इंसान को सुकून देती है जिसका मन कहीं न कहीं अशांत है।

    चाहे वो मैदान पर रनों का अंबार लगाने वाले विराट कोहली हों या गलियों में घूमने वाला कोई साधारण व्यक्ति—प्रेमानंद महाराज की चौखट पर पहुँचते ही सबका अहंकार, दुख और डर जैसे हवा में विलीन हो जाता है।

    1. अनिरुद्ध से प्रेमानंद तक: वह बालक जिसने 'अमर' की खोज की

    इस आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत उत्तर प्रदेश के कानपुर के सरसोल गाँव में हुई। 1969 के आसपास एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे अनिरुद्ध कुमार पांडे बचपन से ही बाकी बच्चों से अलग थे। जब उनके उम्र के बच्चे खिलौनों के पीछे भागते थे, अनिरुद्ध मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर यह सोचते थे कि— “जब सब चले जाएंगे, तब मेरा कौन होगा?”

    यही वह सवाल था जिसने वैराग्य की अग्नि जलाई। 13 साल की उम्र में, एक रात जब पूरा गाँव सो रहा था, अनिरुद्ध अपने घर से निकल पड़े। बिना किसी पैसे के, बिना किसी नक्शे के, बस एक ज़िद के साथ—कि अगर भगवान हैं, तो उन्हें पाकर रहना है।

    2. काशी का कठिन तप: जब भूख ही साधना बन गई

    अनिरुद्ध का पहला पड़ाव काशी (वाराणसी) था। वहाँ की गलियों में उन्होंने वह कठोर तप किया जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। कई दिन ऐसे गुज़रे जब भोजन नसीब नहीं हुआ, तब केवल गंगाजल पीकर उन्होंने रातें बिताईं। उस दौर ने उन्हें सिखाया कि शरीर की भूख से बड़ी मन की प्यास होती है।

    3. वृंदावन की पुकार: रासलीला और वह अधूरापन

    काशी में शिव की भक्ति के बीच एक दिन उन्होंने रासलीला देखी। कृष्ण की वह मुरली और राधा का वह प्रेम उनके दिल में घर कर गया। उन्हें महसूस हुआ कि ज्ञान का मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन प्रेम का मार्ग सबको अपना लेता है। बस यहीं से उनका रुख वृंदावन की ओर हुआ।

    वृंदावन पहुँचकर उन्हें राधावल्लभ संप्रदाय मिला और उनके गुरु श्री गौरांगी शरण जी महाराज (बड़े गुरु जी) ने उन्हें 'सहचारी भाव' की दीक्षा दी। यहाँ अनिरुद्ध, 'प्रेमानंद' बने और अगले 10 सालों तक उन्होंने अपने गुरु की वह सेवा की जो आज के समय में दुर्लभ है—झाड़ू लगाने से लेकर गुरु जी के वस्त्र धोने तक, उन्होंने हर काम में राधा रानी के दर्शन किए।


    4. दर्द में भी मुस्कान: जब जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा आई

    महाराज जी के जीवन का सबसे हृदयस्पर्शी हिस्सा उनकी बीमारी है। लगभग 35 वर्ष की उम्र में उनकी दोनों किडनियाँ खराब हो गईं। आज भी वे भयंकर पीड़ा और कमजोरी से जूझते हैं, लेकिन उनके चेहरे की मुस्कान कभी कम नहीं होती।

    "शरीर प्रकृति का है, यह तो बीमार होगा ही; लेकिन मन तो राधा रानी के चरणों में है, उसे कोई बीमारी नहीं छू सकती।"

    हैरानी की बात यह है कि जब भक्तों ने उन्हें अपनी किडनी दान करने की पेशकश की, तो महाराज जी ने बड़े प्यार से मना कर दिया। वे नहीं चाहते थे कि उनके कारण किसी और को कष्ट हो। आज भी, उसी जर्जर शरीर के साथ, वे हर रात 2 बजे उठकर वृंदावन की परिक्रमा करते हैं और घंटों भक्तों के सवालों का जवाब देते हैं।


    5. क्या खास है महाराज जी की बातों में?

    प्रेमानंद महाराज जी कोई ताबीज नहीं देते, न ही कोई बड़ा चमत्कार दिखाते हैं। वे बस आपको खुद से मिलना सिखाते हैं। उनकी बातें इतनी सरल होती हैं कि एक अनपढ़ व्यक्ति भी उसे समझ ले और एक बहुत बड़ा विद्वान भी उससे प्रभावित हो जाए।

    • वे कहते हैं—भक्ति दुनिया से भागना नहीं है, बल्कि दुनिया में रहकर बेहतर इंसान बनना है।

    • वे सिखाते हैं कि अहंकार ही हमारे सारे दुखों की जड़ है।

    प्रेम का मार्ग प्रेमानंद जी महाराज की वह अनकही कहानी, जिसने दुनिया को झुकना सिखाया


    निष्कर्ष: हम क्या सीख सकते हैं?

    प्रेमानंद महाराज का जीवन हमें यह याद दिलाता है कि प्रसिद्धि और पैसा आपको वह शांति नहीं दे सकते, जो 'समर्पण' दे सकता है। आज जब वे सोशल मीडिया के जरिए दुनिया के कोने-कोने में पहुँच रहे हैं, तब भी वे वही सादगी पसंद संत बने हुए हैं। उनके लिए विराट कोहली का आना और किसी गरीब का आना एक बराबर है।

    उनकी कहानी हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हों, अगर आपका मन अपने लक्ष्य (या ईश्वर) में टिका है, तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको विचलित नहीं कर सकती।

    जय श्री राधे कृष्णा।


    क्या आप भी महाराज जी के सत्संग सुनते हैं? उनकी कौन सी बात आपके दिल को छू गई? कमेंट्स में जरूर साझा करें।