जो शरण, गुरु की आया इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी
कहते हैं कि जब रावण पृथ्वी में गिरा तो पृथ्वी हिल गई, जब भगवान श्री राम ने रावण को मारा और वो पृथ्वी में गिरा तो पूरी पृथ्वी हिल गई थी।
डोली भूमि गिरत दसकंधर | Doli Bhumi Girat Daskandar
रावण जब मरने वाले था तब भगवान श्री राम ने लक्ष्मण को कहा कि जाओ और रावण से कुछ सीख के आओ। भगवान श्री राम के कहे अनुसार लक्ष्मण जी रावण के पास जाते हैं और शास्त्र कहते कि लक्ष्मण अहंकार में रावण के सर के पास खड़े हो गए तब भगवान श्री राम ने समझाया कि गुरू के सामने झुकना पड़ता है, तो सर के पास नहीं पाव के पास जाओ, तब लक्ष्मण जी रावण के पाव के पास जा के रावण से कहते है कि मुझे कुछ ज्ञान की शिक्षा दो तब रावण कहता हैं की मुझे एक बात का जवाब दो, लक्ष्मण बोले कौन सी बात। रावण ने कहा कि तुम क्षत्रि मै ब्रह्मण मेरा कुल तुमसे बड़ा मैं चारो वेदों का ज्ञाता, मेरी ताकत तुमसे बड़ी, मेरा राज्य तुमसे बड़ा फिर भी मै हरा क्यों, लक्ष्मण जी ने कहा मुझे नहीं पता तब रावण ने कहा कि यहीं तो मैं तुम्हे सीखना चाहता हूं कि तुम चरित्रवान मैं चरित्रहीन । गुरू कहीं भी आपको जीवन कि शिक्षा दे सकता है तो आइए गुरू के लिए से वंदना करते है और समझते है कि गुरू की शरण में क्या मिल सकता है
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जो शरण, गुरु की आया |Jo Sharan Guru Ki Aaya Lyrics
सुख का साथी सब जगत, दुःख का साथी न कोए l
दुःख का साथी साँईयाँ, केवल सद्गुरु होए ll
जो शरण, गुरु की आया,-2
इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
जिसने, गुरु ज्ञान पचाया,-2
इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -4
रामायण में, शिव जी कहते -2
भागवत में, सुकदेव जी कहते -2
गुरबाणी में, नानक कहते -2
जिसने हरि नाम कमाया-2
तो इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
जो शरण, गुरु की आया,-2
इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
चिन्ता और भय, सब मिट जाए -2
दुनिया के बंधन हट जाए-2
संकट के बादल छट जाए -2
जिसने गुरु को अपनाया -2
तो इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
जो शरण, गुरु की आया,-2
इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
साँसो में हो, प्रभु का सिमरण -2
और मन में, गुरुवर का चिन्तन -2
फिर कैसा माया का बंधन-2
जिसे द्वार गुरु का भाया-2
तो इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
जो शरण, गुरु की आया,-2
इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
जो सत्संग में आ जाएंगे -2
वो गुरु कृपा प् जाएंगे-2
भवसागर से तर जाएंगे -2
जिसने जग को ठुकराया-2
इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
जो शरण, गुरु की आया,-2
इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
जो शरण, गुरु की आया,-2
इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -2
जिसने, गुरु ज्ञान पचाया,-2
इहाँ लोक सुखी, परलोक सुखी -4
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यह गाना / भजन, श्री गौरव कृष्ण शास्त्री जी महाराज द्वारा गाया गया है, श्री गौरव कृष्ण शास्त्री जी महाराज के पिता श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महराज हैं| श्री गौरव कृष्ण शास्त्री जी महाराज भागवत पुराण वाचक एवं भजन गायक हैं| श्री गौरव कृष्ण शास्त्री जी महाराज का जन्म 6 जुलाई 1984 को उत्तर प्रदेश के वृंदावन में हुआ हैं|