Short Motivational Story in Hindi for Success

शिष्य - हे गुरुवर, क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ? यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं होती ? और यदि नहीं खाते हैं, तो भोग ल

क्या आपने कभी सोचा की हम जो हम भगवान को भोग चढ़ाते है क्या भगवान वो भोग खाते है अगर कहते है तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं होती? और अगर नहीं खाते तो वह भोग कैसे? तो आज हम इस Short Motivational Story in Hindi for Success की यात्रा में यही समझेंगे की भगवान को हम जो भोग देते है वो कैसे खाते है|  

Short Motivational Story in Hindi for Success

Short Motivational Story in Hindi for Success

एक बार की बात है, एक जगह सत्संग चल रहा था| एक गुरु थे प्रवचन दे रहे थे उनके साथ उनके कुछ शिष्य और कुछ भक्त गण भी थे| तो अचानक एक शिष्य ने प्रश्न किया-

शिष्य - हे गुरुवर, मेरे मन में एक सवाल आया है अनुमति हो तो पूछ लू |  

गुरुदेव - अवश्य पूछो भगवान को लेके कोई भी शंका कभी मन में नहीं रहनी चाहिए |  

शिष्य - हे गुरुवर, क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ? यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं होती ? और यदि नहीं खाते हैं, तो भोग लगाने का क्या लाभ?

गुरुदेव समझ गए की अगर मैं सीधे तरीके से समझूंगा तो शायद बात समझने में परेशानी हो इसलिए गुरुदेव ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया। और थोड़ा मुस्कुराये और कहा की थोड़ा रुको मैं आपको इसका जवाब थोड़ी देर में देता हु और वे पूर्ववत् पाठ पढ़ाते रहे। उस दिन उन्होंने पाठ के अन्त में एक श्लोक पढ़ाया: 

 पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते

पाठ पूरा होने के बाद गुरु ने शिष्यों से कहा कि वे पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ/ याद कर लें। एक घंटे बाद गुरु ने प्रश्न करने वाले शिष्य से पूछा 

गुरुवर - आपको श्लोक कंठस्थ/याद  हुआ कि नहीं ?

उस शिष्य ने पूरा श्लोक शुद्ध-शुद्ध गुरु को सुना दिया। 

फिर भी गुरु ने सिर 'नहीं' में हिलाया,

तो शिष्य ने कहा कि

शिष्य -हे गुरुवर, आप चाहें, तो पुस्तक देख लें; श्लोक बिल्कुल शुद्ध है।

गुरुदेव  ने पुस्तक देखते हुए कहा “श्लोक तो पुस्तक में ही है, तो तुम्हारे दिमाग में कैसे चला गया? ये श्लोक तो पुस्तक से मिटा भी नहीं फिर भी तुम्हारे दिमाक में चला गया कैसे?  

शिष्य के पास इस सवाल का कोई भी उत्तर नहीं था।

तब गुरुदेव  ने कहा  की  “पुस्तक में जो श्लोक है, वह स्थूल रूप में है। तुमने जब श्लोक पढ़ा, तो वह सूक्ष्म रूप में तुम्हारे दिमाग में प्रवेश कर गया, उसी सूक्ष्म रूप में वह तुम्हारे मस्तिष्क में रहता है। और जब तुमने इसको पढ़कर कंठस्थ/याद  कर लिया, तब भी पुस्तक के स्थूल रूप के श्लोक में कोई कमी नहीं आई ...

इसी प्रकार पूरे विश्व में व्याप्त परमात्मा हमारे द्वारा चढ़ाए गए निवेदन को सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं, और इससे स्थूल रूप के वस्तु में कोई कमी नहीं होती। उसी को हम प्रसाद के रूप में  ग्रहण करते हैं। शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया. 

Post a Comment

Cookie Consent
We serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.