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चार रहसमयी पक्षीयो की कथा

चार रहसमयी पक्षीयो की कथा

भाग-2 व्यास-✍

ताक्षी आकाश में उड़ रही थी उसी समय अर्जुन ने अपनी किसी शत्रु के ऊपर बाण का संधान किया था। दुर्भाग्यवश यह बाण तार्क्षी के पंखों को छेदता हुआ निकल गया और वह अपने गर्भस्त्र अंडों को गिराकर स्वयं भी मृत्यु को प्राप्त होकर पुन: अपने अप्सरा स्वरूप में आकर देवलोक चली गई। लेकिन उसके अंडे गर्भ-विच्छेद के कारण पृथ्वी पर गिर पड़े। संयोगवश उसी समय युद्ध लड़ रहे भगदत्त के सुप्रवीक नामक गजराज का विशालकाय 👉गलघंट भी बाण लगने से टूटकर गिरा और उसने अंडों को आच्छादित (ढंक लिया) कर दिया

कुछ समय बाद उन अंडों से बच्चे निकले। तभी उस समय मार्ग से विचरण करते हुए मुनि शमीक आ निकले। मुनि उन पक्षी शावकों पर अनुकंपा करके अपने आश्रम में ले जाकर पालने लगे। कुछ समय बाद वे परिपुष्ट होकर मनुष्य की वाणी बोलते हुए अपने गुरु यानी मुनि को प्रणाम करने गए। मुनिवर शमीक ने विस्मित होकर उनसे पूछा कि तुम कैसे यह वाणी बोलते हो? तब उन चारों पक्षियों ने अपने पूर्व जन्म का वृत्तांत सुनाया। 

उन्होंने कहा कि मुनिवर प्राचीन काल में विपुल नामक एक तपस्वी ऋषि थे। उनके सुकृत और तुंबुर नाम के दो पुत्र हुए। हम चारों सुकृत के पुत्र थे। एक दिन इंद्र ने पक्षी के रूप में हमारे पिता के आश्रम में पहुंचकर मनुष्य का मांस मांगा। हमारे पिता ने हमें आदेश दिया कि हम पितृऋण चुकाने के लिए इंद्र का आहार बनें। हमने नहीं माना। इस पर हमारे पिता ने हमें पक्षी रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया और स्वयं पक्षी का आहार बनने के लिए तैयार हो गए। तब इंद्र ने प्रसन्न होकर हमारे पिता से कहा कि मुनिवर, आपकी परीक्षा लेने के लिए मैंने मनुष्य का मांस मांगा था। आप बड़े दयालु हैं, मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। यह कहकर इंद्र अपने लोक चले गए।

हे गुरुवर, इसके बाद हमने अपने पिता से कहा कि पिताजी आप हम पर कृपा करके हमें श्राप से मुक्त कर दीजिए। हमारे पिता ने अनुग्रह करके हमें श्रापमुक्त होने का उपाय बताया कि पुत्रो, तुम लोग पक्षी रूप में ज्ञानी बनकर कुछ दिन विंध्याचल पर्वत की कंदरा में निवास करोगे। महर्षि जैमिनी तुम्हारे पास आकर अपनी शंकाओं का निवारण करने के लिए तुम लोगों से प्रार्थना करेंगे, तब तुम लोग मेरे श्राप से मुक्त हो जाओगे। इस कारण हम पक्षी बन गए।

उपरोक्त सारा वृत्तांत सुनकर शमीक ने उन्हें समझाया कि तुम लोग शीघ्र विंध्याचल में चले जाओ। मुनि शमीक के आदेशा नुसार केक पक्षी विंध्याचल में जाकर निवास करने लगे।यह कथा सुनाकर मार्कण्डेय मुनि ने जैमिनी ऋषि से कहा कि- हे जैमिनी, तुम विंध्याचल में जाकर उन पक्षियों से अपनी शंका का समाधान कर लो।

जैमिनी महर्षि विंध्याचल पहुंचे और उन्होंने वहां उच्च स्वर में वेदों का पाठ करते पक्षियों को देखा। यह देखकर उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। जब जैमिनी ने उन चारों पक्षियों को प्रणाम किया और उनसे अपने 4 प्रश्न उनसे पूछे।

ये चार प्रश्न इस प्रकार थे- 

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1-इस जगत के कर्ता-धर्ता भगवान

       ने मनुष्य का जन्म क्यों लिया?


2- राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी पांच

          पतियों की पत्नी क्यों बनी?


3-श्रीकृष्ण के भ्राता बलराम ने किस

         कारण तीर्थ यात्राएं कीं?


4- द्रौपदी के पांच पुत्र उपपांडवों की

          ऐसी जघन्य मृत्यु क्यों हुई?

 

चारों पक्षियों ने ऋषि जैमिनी की शंका का समाधान करने के लिए एक बहुत ही लंबी कथा सुनाई और जैमिनी ऋषि उसे सुनकर संतुष्ट हो गए। इस तरह चारों पक्षियों को भी पक्षी योनि से मुक्ति मिली।


|| पंचम वेद की जय हो ||

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