क्या आप जानते है की कहां और कैसे स्थापित हुआ था सबसे पहला शिवलिंग, और किसने की थी उसकी सबसे पहले पूजा?
लिंगमहापुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी-अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए दोनों देव एक-दूसरे का अपमान करने लगे। जब उनका विवाद बहुत अधिक बढ़ गया, तब एक अग्नि से ज्वालाओं के लिपटा हुआ लिंग भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच आकर स्थापित हो गया।
दोनों देव उस लिंग का रहस्य समझ नहीं पा रहे थे। उस अग्नियुक्त लिंग का मुख्य स्रोत का पता लगाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उस लिंग के ऊपर और भगवान विष्णु ने लिंग के नीचे की ओर जाना शुरू किया। हजारों सालों तक खोज करने पर भी उन्हें उस लिंग का स्त्रोत नहीं मिला।
महादेव पर क्यों नहीं चढ़ाया जाता है केतकी का फूल?
जब ब्रह्माजी नीचे की ओर जा रहे थे तो ब्रह्माजी ने देखा कि एक केतकी फूल भी उनके साथ नीचे आ रहा है. जब बहुत यात्रा करने के बाद भी ज्योतिर्लिंग कहां से उत्पन्न हुआ नहीं पता चला तब ब्रह्माजी ने केतकी के फूल को खुद के पक्ष में झूठ बोलने के लिए राजी कर लिया और महादेव के पास पहुंचकर कहा कि उन्होंने पता लगा लिया है कि ज्योतिर्लिंग कहां से उत्पन्न हुआ. उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया. वहीं दूसरी तरफ विष्णु भगवान ने लौटकर महादेव से कहा कि वे इस शिवलिंग का अंत ढूंढ पाने में असमर्थ रहे हैं
ब्रह्मा जी ने केतकी के फूल से अपने पक्ष में झूठ बुलवाया. लेकिन महादेव तो अंतर्यामी हैं और वे सच जानते थे. इसलिए उन्हें इस झूठ पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया और केतकी के पुष्प को झूठ बोलने के लिए दंडित करते हुए कहा कि आज के बाद इस पुष्प का इस्तेमाल कभी भी मेरी पूजा में नहीं किया जा सकेगा. मैं इस पुष्प को कभी स्वीकार नहीं करूंगा.
कहां और कैसे स्थापित हुआ था सबसे पहला शिवलिंग
इसके बाद ब्रह्मा जी को अपनी भूल का अहसास हुआ और भगवान ब्रहमा और भगवान विष्णु शिवजी आराधना करने लगे।
भगवान ब्रहमा और भगवान विष्णु की आराधना से खुश होकर उस लिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और दोनों देवों को सद्बुद्धि का वरदान भी दिया। देवों को वरदान देकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए और एक शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। लिंगमहापुराण के अनुसार वह भगवान शिव का पहला शिवलिंग माना जाता था
जब भगवान शिव वहां से चले गए और वहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए, तब सबसे पहले भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने शिव के उस लिंग की पूजा-अर्चना की थी। उसी समय से भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा करने की परम्परा की शुरुआत मानी जाती है
विश्वकर्मा ने किया था विभिन्न शिवलिंगों का निर्माण
लिंगमहापुराण के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने देव शिल्पी विश्वकर्मा को सभी देवताओं के लिए अलग-अलग शिवलिंग का निर्माण करने को कहा था। भगवान ब्रह्मा के कहने पर भगवान विश्वकर्मा ने अलग-अलग शिवलिंग बना कर देवताओं को प्रदान किए।
- भगवान विष्णु के लिए नीलकान्तमणि का शिवलिंग बनाया गया।
- भगवान कुबेर के पुत्र विश्रवा के लिए सोने का शिवलिंग बनाया गया।
- इन्द्रलोक के सभी देवतोओं के लिए चांदी के शिवलिंग बनाए गए।
- वसुओं को चंद्रकान्तमणि से बने शिवलिंग प्रदान किए।
- वायु देव को पीलत से बने और भगवान वरुण को स्फटिक से बने शिवलिंग दिए गए।
- आदित्यों को तांबे और अश्विनीकुमारों को मिट्टी से निर्मित शिवलिंग प्रदान किए गए।
- दैत्यों और राक्षसों को लोहे से बने शिवलिंग दिए गए।
- सभी देवियों को बालू से बने शिवलिंग दिए गए।
- देवी लक्ष्मी ने लक्ष्मीवृक्ष (बेल) से बने शिवलिंग की पूजा की।
- देवी सरस्वती को रत्नों से बने और रुद्रों को जल से बने शिवलिंग दिए गए।
***हर हर महादेव..***