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पितृ पक्ष विशेष में | गया कोठा तीर्थ उज्जैन

गया के बाद उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व सनातन धर्म परंपरा में बिहार के गयाजी तीर्थ के बाद उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व है। उज्जैन में सिद्धवट,गय


*गया के बाद उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व सनातन धर्म परंपरा में बिहार के गयाजी तीर्थ के बाद उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व है। उज्जैन में सिद्धवट,गयाकोठा और रामघाट पर तर्पण का विधान है। देश-दुनिया से लोग यहां श्राद्ध पक्ष में आते हैं। तीनों ही स्थान का अपना महत्व है।*


*गया कोठा बिहार की मोक्ष नगरी गया का प्रतिनिधि स्थान है।इसका भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के लिए उतना ही महत्व है जितना महत्व गयाजी का है। इसके साथ रामघाट पर भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध स्थान माना जाता है। भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी उज्जैन आकर रामघाट पर किया था।*


*श्राद्ध पक्ष में उज्जैन स्थित गया कोठा का विशेष महत्व है!भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने उज्जैन में गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण की थी।स्कंद पुराण के अवंतिका खंड के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब श्रीकृष्ण ने गुरु सांदीपनि से कहा कि आपको गुरु दक्षिणा में क्या दे सकता हूं तब उन्होंने कहा था कि मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं आपको शिक्षा देकर ही धन्य हो गया।*


*तब गुरु माता ने श्रीकृष्ण से कहा था कि उनके सात गुरु भाइयों को गजाधर नामक राक्षस अपने साथ ले गया है। वे उन सभी को लेकर आए। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि छह भाइयों का गजाधर वध कर चुका है। उन्हें लेकर आऊंगा तो यह प्रकृति के विरुद्ध होगा।*


*एक अन्य गुरु भाई को उसने पाताल लोक में छुपाकर रखा है। वे उसे ला सकते हैं। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने गजाधर का रूप धारण कर गजाधर का वध किया था और उक्त गुरु भाई को उनके पास लाकर सुपुर्द किया था। तब गुरु माता ने छह गुरु भाइयों के मोक्ष का सरल उपाय बताने को कहा था।*


*उनका कहना था कि गुरु सांदीपनि क्षिप्रा नदी पार नहीं कर सकते। तब श्रीकृष्ण ने बिहार के गया में स्थित फल्गु नदी को गुप्त रूप से उज्जैन में प्रकट किया था। यह अंकपात मार्ग स्थित सांदीपनि आश्रम के पास स्थित है। यह स्थान गयाकोठा कहलाता है।*


*बिहार में मातृ-पितृ गया है यानी व्यक्ति माता-पिता के ऋण से मुक्त होता है।👉 लेकिन उज्जैन के गया कोठा में स्वयं के ऋण से भी उसे मुक्ति मिलती है। यहां प्रत्येक तीर्थो के चरण विराजमान हैं। यहां इन चरणों और सप्तऋषि की साक्षी में कर्म किया जाता है। यहां पितृ शांति और महालय श्राद्ध भी किया जाता है। तभी से गयाकोठा का पुराणों में भी विशेष महत्व दिखाई दिया गया।*


*|| गया कोटा तीर्थ अवन्तिका की जय हो ||*

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