होनी बहुत बलवान है
अभिमन्यु के पुत्र ,राजा परीक्षित थे। राजा परीक्षित के बाद उन के लड़के जनमेजय राजा बने।
एक दिन जनमेजय वेदव्यास जी के पास बैठे थे। बातों ही बातों में जन्मेजय ने कुछ नाराजगी से वेदव्यास जी से कहा.. कि,"जहां आप समर्थ थे ,भगवान श्रीकृष्ण थे, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य कुलगुरू कृपाचार्य जी, धर्मराज युधिष्ठिर, जैसे महान लोग उपस्थित थे| फिर भी आप महाभारत के युद्ध को होने से नहीं रोक पाए और देखते-देखते अपार जन-धन की हानि हो गई। यदि मैं उस समय रहा होता तो, अपने पुरुषार्थ से इस विनाश को होने से बचा लेता"।
अहंकार से भरे जन्मेजय के शब्द सुन कर भी, व्यास जी शांत रहे।
उन्होंने कहा," पुत्र अपने पूर्वजों की क्षमता पर शंका न करो। यह विधि द्वारा निश्चित था,जो बदला नहीं जा सकता था, यदि ऐसा हो सकता तो श्रीकृष्ण में ही इतनी सामर्थ्य थी कि वे युद्ध को रोक सकते थे।
जन्मेजय अपनी बात पर अड़ा रहा और बोला,"मैं इस सिद्धांत को नहीं मानता। आप तो भविष्यवक्ता है, मेरे जीवन की होने वाली किसी होनी को बताइए...मैं उसे रोककर प्रमाणित कर दूंगा कि विधि का विधान निश्चित नहीं होता"।
व्यास जी ने कहा,"पुत्र यदि तू यही चाहता है तो सुन...."।
कुछ वर्ष बाद तू काले घोड़े पर बैठकर शिकार करने जाएगा दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर पहुंचेगा...वहां तुम्हें एक सुंदर स्त्री मिलेगी.. जिसे तू महलों में लाएगा, और उससे विवाह करेगा। मैं तुम को मना करूँगा कि ये सब मत करना लेकिन फिर भी तुम यह सब करोगे। इस के बाद उस लड़की के कहने पर तू एक यज्ञ करेगा..। मैं तुम को आज ही चेता कर रहा हूं कि उस यज्ञ को तुम वृद्ध ब्राह्मणो से कराना.. लेकिन, वह यज्ञ तुम युवा ब्राह्मणो से कराओगे.... और..
जनमेजय ने हंसते हुए व्यासजी की बात काटते हुए कहा कि,"मै आज के बाद काले घोड़े पर ही नही बैठूंगा..तो ये सब घटनाऐ घटित ही नही होगी।
व्यासजी ने कहा कि,"ये सब होगा..और अभी आगे की सुन...,"उस यज्ञ मे एक ऐसी घटना घटित होगी....कि तुम ,उस रानी के कहने पर उन युवा ब्राह्मणों को प्राण दंड दोगे, जिससे तुझे ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा...और..तुझे कुष्ठ रोग होगा.. और वही तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इस घटनाक्रम को रोक सको तो रोक लो"।
वेदव्यास जी की बात सुनकर जन्मेजय ने एहतियात वश शिकार पर जाना ही छोड़ दिया। परंतु जब होनी का समय आया तो उसे शिकार पर जाने की बलवती इच्छा हुई। उस ने सोचा कि काला घोड़ा नहीं लूंगा.. पर उस दिन उसे अस्तबल में काला घोड़ा ही मिला। तब उस ने सोचा कि..मैं दक्षिण दिशा में नहीं जाऊंगा परंतु घोड़ा अनियंत्रित होकर दक्षिण दिशा की ओर गया और समुद्र तट पर पहुंचा वहां पर उसने एक सुंदर स्त्री को देखा, और उस पर मोहित हुआ। जन्मेजय ने सोचा कि इसे लेकर महल मे तो जाउंगा....लेकिन शादी नहीं करूंगा।
परंतु, उसे महलों में लाने के बाद, उसके प्यार में पड़कर उस से विवाह भी कर लिया। फिर रानी के कहने से जन्मेजय द्वारा यज्ञ भी किया गया। उस यज्ञ में युवा ब्राह्मण ही, रक्खे गए।
किसी बात पर युवा ब्राह्मण...रानी पर हंसने लगे। रानी क्रोधित हो गई ,और रानी के कहने पर राजा जन्मेजय ने उन्हें प्राण दंड की सजा दे दी.., फलस्वरुप उसे कोढ हो गया।
अब जन्मेजय घबरा गया.और तुरंत व्यास जी के पास पहुंचा...और उनसे जीवन बचाने के लिए प्रार्थना करने लगा।
वेदव्यास जी ने कहा कि,"एक अंतिम अवसर तेरे प्राण बचाने का और देता हूं......., मैं तुझे महाभारत में हुई घटना का श्रवण कराऊंगा जिसे तुझे श्रद्धा एवं विश्वास के साथ सुनना है..., इससे तेरा कोढ् मिटता जाएगा।
परंतु यदि किसी भी प्रसंग पर तूने अविश्वास किया.., तो मैं महाभारत का प्रसंग रोक दूंगा..,और फिर मैं भी तेरा जीवन नहीं बचा पाऊंगा...,याद रखना अब तेरे पास यह अंतिम अवसर है।
अब तक जन्मेजय को व्यासजी की बातों पर पूरा विश्वास हो चुका था, इसलिए वह पूरी श्रद्धा और विश्वास से कथा श्रवण करने लगा।
व्यासजी ने कथा आरम्भ करी और जब भीम के बल के वे प्रसंग सुनाऐ ....,जिसमें भीम ने हाथियों को सूंडों से पकड़कर उन्हें अंतरिक्ष में उछाला...,वे हाथी आज भी अंतरिक्ष में घूम रहे हैं....,तब जन्मेजय अपने आप को रोक नहीं पाया,और बोल उठा कि ये कैसे संभव हो सकता है। मैं नहीं मानता।
व्यास जी ने महाभारत का प्रसंग रोक दिया....और कहा..कि,"पुत्र मैंने तुझे कितना समझाया...कि अविश्वास मत करना...परंतु तुम अपने स्वभाव को नियंत्रित नहीं कर पाए। क्योंकि यह होनी द्वारा निश्चित था"।
फिर व्यास जी ने अपनी मंत्र शक्ति से आवाहन किया..और वे हाथी पृथ्वी की आकर्षण शक्ति में आकर नीचे गिरने लगे.....तब व्यास जी ने कहा, यह मेरी बात का प्रमाण है"।
जितनी मात्रा में जन्मेजय ने श्रद्धा विश्वास से कथा श्रवण की,
उतनी मात्रा में वह उस कुष्ठ रोग से मुक्त हुआ परंतु एक बिंदु रह गया और वही उसकी मृत्यु का कारण बना।
सार :-
पहले बनती है तकदीरे फिर बनते हैं शरीर।
कर्म हमारे हाथ मे है...लेकिन उस का फल हमारे हाथों में नहीं है।
गीता के 11 वें अध्याय के 33 वे श्लोक मैं श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं,"उठ खड़ा हो और अपने कार्य द्वारा यश प्राप्त कर। यह सब तो मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं तू तो केवल निमित्त बना है।
होनी को टाला नहीं जा सकता लेकिन नेक कर्म व ईश्वर नाम जाप से होनी के प्रभाव को कम किया जा सकता है अर्थार्थ रोग आएंगे परंतु पीड़ा नहीं होगी।
जय जय श्री राधे
1. होनी और भाग्य का महत्व
1.1. राजा परीक्षित से राजा जन्मेजय तक का सफर
- अभिमन्यु के पुत्र, राजा परीक्षित के बाद उनके पुत्र जन्मेजय राजा बने।
- जन्मेजय का अभिमान और वेदव्यास जी से उनकी वार्ता।
1.2. भाग्य और पुरुषार्थ पर विवाद
- जन्मेजय का विश्वास: होनी को टाला जा सकता है।
- वेदव्यास जी का तर्क: होनी अटल है।
2. होनी के संकेत और राजा जन्मेजय की गलतियाँ
2.1. वेदव्यास जी की भविष्यवाणी
- काले घोड़े पर बैठकर दक्षिण दिशा में जाने का वर्णन।
- सुंदर स्त्री से विवाह और यज्ञ कराने की चेतावनी।
2.2. होनी से बचने का असफल प्रयास
- शिकार छोड़ने का निर्णय।
- काले घोड़े और सुंदर स्त्री से जुड़ी घटनाएँ।
- यज्ञ में युवा ब्राह्मणों का चयन और उनकी प्राणदंड की घटना।
3. राजा जन्मेजय का पश्चाताप और उपाय
3.1. व्यास जी के शरण में जाना
- ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति का उपाय।
- महाभारत कथा श्रवण का निर्देश।
3.2. अविश्वास का दुष्प्रभाव
- कथा के दौरान अविश्वास प्रकट करना।
- व्यास जी का कथा रोकना और प्रमाण स्वरूप हाथियों का गिरना।
4. कथा से प्राप्त जीवन के अनमोल सबक
4.1. तकदीर और शरीर का गहरा संबंध
- पहले बनती है तकदीर, फिर शरीर।
- कर्म पर ध्यान दें, फल का निर्णय ईश्वर पर छोड़ें।
4.2. गीता का संदेश: कर्म ही धर्म है
- श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को कर्म करने का उपदेश।
- जीवन में होनी को स्वीकारना और नेक कर्मों से उसका प्रभाव कम करना।
5. सारांश और प्रेरणा
- होनी को टाला नहीं जा सकता:
होनी अटल है, लेकिन नेक कर्म और ईश्वर भक्ति से उसका प्रभाव कम किया जा सकता है। - जीवन का उद्देश्य:
पीड़ा से बचने के लिए धर्म और सत्य के मार्ग पर चलें।
FAQs
Q1. क्या होनी को टाला जा सकता है?
नहीं, लेकिन अच्छे कर्म और ईश्वर भक्ति से उसका प्रभाव कम किया जा सकता है।
Q2. इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?
हमें अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए और फल की चिंता ईश्वर पर छोड़नी चाहिए।
Q3. क्या गीता में होनी के बारे में उल्लेख है?
हाँ, गीता के 11वें अध्याय के 33वें श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन को होनी और कर्म का महत्व समझाते हैं।
जय जय श्री राधे