ज़रा
सोचिए...
आप मच्छर के आकार में
बदलकर किसी हाई-सेक्योरिटी
इलाके में घुस रहे
हैं। सामने अचानक एक डरावनी चौकीदारिन
खड़ी हो जाए और
बोले –
"अबे! कहाँ घुस रहा
है?
कुछ ऐसा ही हुआ जब हनुमान जी पहली बार लंका पहुँचे।
🌑 रात थी… लेकिन ये कोई साधारण रात नहीं थी।
लंका की हवाओं में गुरूर बह रहा था।
रावण का राज्य — सोने का महल, राक्षसों की गूंज, और एक अभेद्य सुरक्षा।
पर आज की रात हवा कुछ अलग थी।
🌬️ हवा में था राम नाम का कंपन…
और उसी के साथ आया एक आकार…
न कोई सेनापति, न कोई योद्धा — एक मच्छर!
हाँ, मच्छर के रूप में भगवान का दूत!
"मसक समान रूप कपि धरी।
लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥"
🛡️ लंकिनी – अहंकार की चौकीदार
वो सिर्फ राक्षसी नहीं थी —
वो थी लंका की आत्मा की रक्षक।
उसके पास था ब्रह्मा का वरदान,
उसकी चेतना किसी भी अदृश्य आहट को पकड़ सकती थी।
और जैसे ही हनुमान जी की दिव्यता लंका के द्वार पर पहुँची…
💢 वो सामने आ गई —
साँसे गरजती हुई, आँखों से चिंगारियाँ निकलती हुई।
"अबे! कौन घुस रहा है?
ये लंका है, तेरे बाप की जागीर नहीं!"
🧘 हनुमान जी – नम्रता की तलवार
हनुमान जी, जो पर्वत उछाल सकते हैं,
जिनकी पूँछ से महल जल सकते हैं —
वो मुस्कराकर बोले:
"माता, मैं रघुनाथ जी का सेवक हूँ।
कोई युद्ध नहीं चाहता।
बस सीता माता की खोज में आया हूँ।"
⚔️ पर अहंकार नम्रता कहाँ समझता है?
लंकिनी गरजी:
"लंका कोई धर्मशाला नहीं!
अगर प्रवेश चाहिए तो —
पहले मुझसे भिड़!"
बस, यहीं कहानी ने करवट ली।
💥 एक घूंसा — पराजय नहीं, भविष्य का शंखनाद
हनुमान जी ने कुछ नहीं कहा।
ना रौद्र रूप,
ना गरजना,
ना चुनौती।
बस… एक घूंसा।
🔥 इतना शांत —
जैसे कोई साधु शंख बजा रहा हो।
🔥 इतना ज़ोरदार —
जैसे खुद भगवान ने “अब समय आ गया” कह दिया हो।
लंकिनी… धड़ाम!
⏳ और फिर… चेतना में वो बात जागी
लंकिनी को याद आया ब्रह्मा जी का वरदान:
"जिस दिन एक वानर एक ही घूंसे में तुझे गिरा दे —
समझना रावण का अंत तय है।"
वो काँपती हुई उठी…
आँखों में आँसू… अहंकार धूल में।
"हे रामदूत!
अब तुझे कौन रोकेगा?
मैं धन्य हो गई।
लंका की पहली दीवार अब गिर गई।"
🙏 लंकिनी — जो पहले थी रक्षक, अब बन गई मार्गदर्शक
"जा बेटा…
जा और वो दीप जला,
जिससे लंका के अंधेरे खत्म हो।"
🌟 और यहीं से शुरू होती है... विनाश की उलटी गिनती।
रावण को नहीं पता —
पर उस रात लंका की नींव हिल चुकी थी।
🔥 अब आप सोचिए…
कभी-कभी ईश्वर किसी मच्छर जैसे विनम्र रूप में आता है,
पर उसका एक स्पर्श पूरी व्यवस्था हिला देता है।
🌌 क्या आपकी ज़िंदगी में भी कोई "लंकिनी" है —
कोई अड़चन, कोई अहंकार, जो आपको रोक रहा है?
क्या आप भी अपने भीतर के हनुमान को जगा सकते हैं?