कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है Lyrics
नमस्कार, आज हम कुमार विश्वास की कुछ कविताएं देखेंगे जैसे "कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है", "कोई खामोश है इतना बहाने भूल आया हूँ", "भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगामा", "कहीं पर जग लिये तुम बिन कहीं पर सो लिये तुम बिन", "आसमान से गिरा परिंदा, तू भी है और मैं भी हूँ", आदि| कुमार विश्वास हिंदी काव्य में एक बड़ा नाम है, ये आम आदमी की तरफ से चुनाव भी लड़े थे|
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है|
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है, ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है||
मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है, कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है|
यहां सब लोग कहते हैं मेरी आँखों में आँसू हैं, जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है||
बदलने को तो इन आँखों के मंज़र कम नहीं बदले, तुम्हारी याद के मौसम, हमारे गम नहीं बदले|
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी, जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले||
हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते, मगर रस्मे-वफा ये है कि ये भी कह नहीं सकते|
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों की चीख सुन भर लो, जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते||
समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन से नहीं सकता, ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता|
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले, जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता||
मिले हर जख्म को, मुस्कान से सीना नहीं आया, अमरता चाहते थे, पर गरल पीना नहीं आया|
तुम्हारी और मेरी दास्तां में फर्क इतना है, मुझे मरना नहीं आया, तुम्हें जीना नहीं आया||
पनाहों में जो आया हो तो उस पे वार क्या करना, जो दिल हारा हुआ हो उस पे फिर अधिकार क्या करना|
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में है, हो ग़र मालमू गहराई तो दरिया पार क्या करना||
जहाँ हर दिन सिसकना है, जहाँ हर रात गाना है, हमारी ज़िन्दगी भी इक तवायफ़ का घराना है|
बहुत मजबूर होकर गीत रोटी के लिखे मैंने, तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है||
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ, तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ|
तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन, तुम्हीं को भूलना जरूरी है, समझता हूँ||
मैं जब भी तेज चलता हूँ नज़ारे छूट जाते हैं, कोई जब रूप गढ़ता हूँ तो साँचे टूट जाते हैं|
मैं रोता हूँ तो आकर लोग कंधा थपथपाते हैं, मैं हँसता हूँ तो अक़सर लोग मुझसे रूठ जाते हैं||
सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता, खुशी के घर में भी बोलो कभी क्या ग़म नहीं होता|
फ़क़त इक आदमी के वास्ते जग छोड़ने वालों, फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता||
हमारे वास्ते कोई दुआ मांगे, असर तो हो, हक़ीक़त में कहीं पर हो न हो आँखों में घर तो हो|
तुम्हारे प्यार की बातें सुनाते हैं ज़माने को, तुम्हें खबरों में रखते हैं मगर तुमको खबर तो हो||
बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया है, नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है|
सदा ही शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन, मुझे तो हर घड़ी, हर पल बहारों ने सताया है||
हर इक नदिया के होंठों पर समन्दर का तराना है, यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है|
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है, तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से ज़माना है||
मेरा प्रतिमान आँसू में भिगोकर गढ़ लिया होता, अकिंचन पाँव तब आगे तुम्हारा बढ़ लिया होता|
मेरी आँखों में भी अंकित समर्पण की ऋचाएँ थीं, उन्हें कुछ अर्थ मिल जाता तो जो तुमने पढ़ लिया होता||
कोई खामोश है इतना बहाने भूल आया हूँ, किसी की इक तरन्नुम में तराने भूल आया हूँ|
मेरी अब राह मत तकना कभी ऐ आसमां वालों, मैं इक चिड़िया की आँखों में उड़ाने भूल आया हूँ||
हमें दो पल सुरूरे इश्क़ में मदहोश रहने दो, जेहन की सीढ़ियाँ उतरों, अमां ये जोश रहने दो|
तुम्हीं कहते थे "ये मसलें नज़र सुलझी तो सुलझेंगे", नज़र की बात है तो फिर ये लब खामोश रहने दो||
मैं उसका हूँ वो इस अहसास से इनकार करता है, भरी महफिल में वो रुसवा मुझे हर बार करता है|
यकीं है सारी दुनिया को खफ़ा है मुझसे वो लेकिन, मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है||
अभी चलता हूँ, रस्ते को मैं मंज़िल मान लूँ कैसे, मसीहा दिल को अपनी ज़िद का क़ातिल मान लूँ कैसे|
तुम्हारी याद के आदिम अन्धेरे मुझको घेरे हैं, तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लूँ कैसे||
भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगामा
भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगामा, हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा|
अभी तक डूब कर सुनते थे सब क़िस्सा मुहब्बत का, में क़िस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हंगामा||
कभी कोई जो खुलकर हँस लिया दो पल तो हंगामा, कोई ख्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा|
में उससे दूर था तो शोर था साज़िश है, साजिश है, उसे बाँहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा||
जब आता है जीवन में ख्यालातों का हंगामा, ये जज्बातों, मुलाकात, हर्सी रातों का हंगामा|
जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब, ये हंगामे की रातें हैं, या है रातों का हंगामा||
क़लम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा, गिरेबां अपना आँसू में भिगोता हूँ तो हंगामा|
नहीं मुझ पर भी जो खुद की ख़बर वो है ज़माने पर, मैं हँसता हूं तो हंगामा, मैं रोता हूं तो हंगामा||
इबारत से गुनाहों तक की मंज़िल में है हंगामा या, ज़रा-सी पी के आये बस तो महफ़िल में है हंगामा|
कभी बचपन, जवानी और बुढ़ापे में है हंगामा, जेहन में है कभी तो फिर कभी दिल में है हंगामा||
हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा, जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा|
हमारे भाल पर तक़दीर ने ये लिख दिया जैसे, हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा||
ये उर्दू बज्म है और मैं तो हिन्दी माँ का जाया हूँ, ज़बानें मुल्क़ की बहनें हैं ये पैग़ाम लाया हूँ|
मुझे दुगनी मुहब्बत से सुनो उर्दू ज़बा वालों, मैं अपनी माँ का बेटा हूँ, मैं घर मौसी के आया हूँ||
स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर हैं हम भी, बहुत मशहूर हो तुम भी, बहुत मशहूर हैं हम भी|
बड़े मग़रूर हो तुम भी, बड़े मग़रूर हैं हम भी, अतः मजबूर हो तुम भी, अतः मजबूर हैं हम भी||
हरेक टूटन, उदासी, ऊब, आवारा ही होती है, इसी आवारगी में प्यार की शुरुआत होती है||
मेरे हँसने को उसने भी गुनाहों में गिना जिसके, हरेक आँसू को मैंने यूँ संभाला जैसे मोती है||
कहीं पर जग लिये तुम बिन कहीं पर सो लिये तुम बिन, भरी महफ़िल में भी अक़सर, अकेले हो लिये तुम बिन|
ये पिछले चन्द बरसों की कमाई साथ है अपने, कभी तो हँस लिये तुम बिन, कभी फिर रो लिये तुम बिन||
हमें दिल में बसाकर अपने घर जाएँ तो अच्छा हो, हमारी बात सुन लें और ठहर जाएँ तो अच्छा हो|
ये सारी शाम जब नज़रों ही नज़रों में बिता दी है, तो कुछ पल और आँखों में गुज़र जाएँ तो अच्छा||
नज़र में शोखियाँ लब पर मुहब्बत का तराना है, मेरी उम्मीद की ज़द में अभी सारा ज़माना है|
कई जीते हैं दिल के देश पर मालूम है मुझको, सिकन्दर हूँ मुझे इक रोज़ खाली हाथ जाना है||
हमारे शेर सुनकर भी जो वो ख़ामोश इतना है, खुदा जाने गुरुरे हुस्न में मदहोश कितना है|
किसी प्याले ने पूछा है सुराही से सबब मय का, जो खुद बेहोश है वो क्या बताए होश कितना है||
बस्ती बस्ती घोर उदासी, पर्वत पर्वत खालीपन, मन हीरा बेमोल लुट गया, घिस घिस रीता तन चन्दन|
इस धरती से उस अम्बर तक, दो ही चीज ग़ज़ब की हैं, एक तो तेरा भोलापन है, एक मेरा दीवानापन||
इस दीवानेपन की लौ में, धरती अम्बर छूट गया, आँखों में जो लहरा था वो, आँचल पल भर में छूट गया|
टूट गयी बाँसुरी और हम बने द्वारिकाधीश मगर, अपना गोकुल बिसर गया और गाँव-गली, घर छूट गया||
सब अपने दिल के राजा है सबकी कोई रानी है, कभी प्रकाशित हो न हो पर सबकी एक कहानी है|
बहुत सरल है पता लगाना किसने कितना दर्द सहा, जिसकी जितनी आँख हँसे हैं उतनी पीर पुरानी है||
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है जो हमको भी प्यारा है और जो तुमको भी प्यारा है|
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर, तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है||
धरती बनना बहुत सरल है कठिन है बादल हो जाना, संजीदा होने में क्या है मुश्किल पागल हो जाना|
रंग खेलते हैं सब लेकिन कितने लोग हैं ऐसे जो, सीख गये हैं फागुन की मस्ती में फागुन हो जाना||
सखियों संग रंगने की धमकी सुनकर क्या डर जाऊँगा, तेरी गली में क्या होगा ये मालूम है पर आऊँगा|
भीग रही है काया सारी खजुराहो की मूरत-सी, इस दर्शन का और प्रदर्शन मत करना मर जाऊँगा||
किस्मत सपन संवार रही है, सूरज पलकें चूम रहा हैं, यूँ तो जिसकी आहट भर से, धरती अम्बर झूम रहा है|
नाच रहे हैं जंगल, पर्वत, मोर, चकोर सभी लेकिन, उस बादल की पीड़ा समझो, जो बिन बरसे घूम रहा है||
हमने दुःख के महा-सिन्धु से सुख का मोती बीना है, और उदासी के पंजों से, हँसने का सुख छीना है|
मान और सम्मान हमें ये याद दिलाते हैं पल-पल, भीतर-भीतर मरना है पर बाहर बाहर जीना है||
इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, तू भी है और मैं भी हूँ, आसमान से गिरा परिंदा, तू भी है और मैं भी हूँ|
छूट गयी रस्ते में जीने-मरने की सारी कसमें, अपने-अपने हाल में जिंदा, तू भी है और में भी हूँ||
खुशहाली में इक बदहाली, तू भी है और मैं भी हूँ, हर निगाह पर एक सवाली, तू भी है और मैं भी हूँ|
दुनियां कुछ भी अर्थ लगाये, हम दोनों को मालूम है, भरे-भरे पर खाली-खाली, तू भी है और मैं भी हूँ||
तुम अमर राग माला बनो तो सही,एक पावन शिवाला बनो तो सही|
लोग पढ़ लेंगे तुमसे सबक़ प्यार का, प्रीति की पाठशाला बनो तो सही||
ताल को ताल की झंकृति तो मिले, रूप को भाव की अनुकृति तो मिले|
मैं भी सपनों में आने लगें आपके, पर मुझे आपकी स्वीकृति तो मिले||
दीप ऐसे बुझे फिर जले ही नहीं, ज़ख्म इतने मिले फिर सिले ही नहीं|
व्यर्थ क्रिस्मत पे रोने से क्या फ़ायदा, सोच लेना कि हम तुम मिले ही नहीं||
लाख अंकुश सहे इस मृदुल गात पर, बन्दिशें कब निर्भी मेरे जज़्बात पर|
आपने पर मुझे बेवफ़ा जब कहा, आँख नम हो गयीं आपकी बात पर||
झूठी तसल्लियों से कुछ भी भला न होगा, या प्यार ही अधूरा खुलकर पता न होगा|
अब भी समय है उसको रो-रो के रोक लो तुम, वो दूर जाने वाला घर से चला न होगा||
वही कच्चे आर्मी के दिन गाँव में हैं, वही नर्म छाँवों के दिन गाँव में हैं|
मगर ये शहर की अजब उलझनें हैं, न तुम गाँव में हो न हम गाँव में है||
मोह को त्यागे हुए पंछी बहुत खुश थे, रात भर जागे हुए पंछी बहुत खुश थे|
यूँ किसी कोने में कोई डर भी था लेकिन, नीड़ से भागे हुए पंछी बहुत खुश थे||
दर्द का साज दे रहा हूँ तुम्हें, दिल के सब राज़ दे रहा हूँ तुम्हें|
ये ग़ज़ल, गीत सब बहाने हैं, मैं तो आवाज़ दे रहा हूँ तुम्हें.....||
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